By सरला माहेश्वरी
हिजाब पहना तो मारेंगे
जींस पहना तो मारेंगे
बुर्का पहना तो मारेंगे
टाँगें दिखाई तो मारेंगे
घूँघट हटाया तो मारेंगे
बोली तो मारेंगे !
न बोली तो मारेंगे !
खिलखिलाई तो मारेंगे
मोबाइल रखा तो मारेंगे
प्रेम किया तो मारेंगे
नौकरी की तो मारेंगे
घर पर रही तो मारेंगे !
इस बहाने ! उस बहाने मारेंगे !
धर्म के नाम पर मारेंगे !
अधर्म के नाम पर मारेंगे !
तुम मारोगे जरूर
ढकूं या उघाड़ूँ कुछ भी
मेरे होने के लिए ही मारोगे
जनम के पहले ही मारोगे !
सच यह है कि तुम्हे
हमारा हिजाब भी डराता है ! हमारी जींस भी डराती है !
घूँघट उठाना भी डराता है ! हमारा बुर्का भी डराता है !
हमारा चुप रहना भी डराता है ! बोलना भी डराता है !
हमारा पढ़ना भी डराता है ! ना पढ़ना भी डराता है !
नौकरी करना भी डराता है ! और घर में रहना भी डराता है !
हमारा खिलखिलाना भी डराता है ! चुप रहना भी डराता है !
गोया हम इंसान नहीं मुट्ठी में बंद तुम्हारे डर का दूसरा नाम हैं !
पर वे दिन दूर नहीं जब
मार ! मार ! मार ! होगा पलटवार !
पलटवार !
खार ! खार ! खार ! ये मार ! वो मार !
ये मार ! वो मार !
तब लड़ाई बराबरी की होगी ! तब आएगा लड़ाई का मज़ा !!
अरे कायर पुरुष मत डर ! मत डर !
हम इंसान है ! मुट्ठी खोल हाथ मिला !
साथ चलकर तो देख ! अपने से निकल कर तो देख !
हमारी आँख से भी देख !
ज़िंदगी को फूलों की तरह महकते तो देख !
पागल ! नजरों को दो-चार करके तो देख !
अरे अभागे ! प्रेम करके तो देख !