The Womb
Home » Blog » Editor's Pick » बदलते परिदृश्य में स्थिर महिलाएं
Editor's Pick Opinion

बदलते परिदृश्य में स्थिर महिलाएं

राजेश ओ.पी.सिंह

आज पूरे विश्व को एक ग्लोबल गांव की संज्ञा दी जाने लगी है अर्थात वैश्वीकरण से सारा विश्व आपस में जुड़ गया है, देशों के बीच कोई रुकावटें नहीं रही हैं, सभी देश आपस में व्यापार व अन्य संधियां कर रहे हैं और तो और इस दौर में बांग्लादेश जैसे तीसरी दुनिया के देश भी विश्व मानचित्र पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाने में सफल हो रहे हैं। परन्तु वैश्वीकरण व विकास के इस दौर में भी पुरुष – महिला के बीच का भेद अभी भी जैसे का तैसा बना हुआ है और ये कम होने की बजाए ज्यादा हो रहा है।

वैश्वीकरण के इस दौर में भी समाज और परिवार चाहता है कि लड़कियां शादी करें ही करें क्योंकि आज भी समाज अकेली महिला या लड़की को स्वीकार नहीं कर पा रहा है। 

शादी को प्रत्येक लड़की के जीवन का सबसे अहम संस्थान बना दिया है, वहीं यदि लड़के शादी ना करे तो कोई परेशानी नहीं होती , ना समाज को और ना ही परिवार को।

शादी ना करने वाली लड़की पर तथाकथित समाज ,परिवार व रिश्तेदार आदि ना जाने क्या क्या तंज कसते है, संस्कृति व धर्म का दबाव बनाते है, उसे महसूस करवाने की कोशिश की जाती है कि स्त्री के सिर पर पुरुष का साया होना कितना आवश्यक है, कितने ही ऐसे काम बता दिए जाते है जो बिना पुरुष के अकेली लड़की नहीं कर सकती, बार बार उसका नाम किसी भी पुरुष या लड़के के साथ जोड़ा जाता है और उसे अपमानित करने का प्रयास किया जाता है। अर्थात एक महिला को अपने हिसाब से अपनी मर्ज़ी से रहने का कोई अवसर या हक नहीं दिया जाता I उसे प्रचलित परम्पराओं के आधार पर ही जीवन जीने के लिए मजबूर किया जाता है। यदि हम तुलना करें तो पाएंगे कि 100 लड़कों को तुलना में केवल 3-4 लड़कियां ही है जो बिना शादी के रह पाने में सफल होती हैं और ये भी केवल देश के महानगरों में संभव है।

हालांकि हम देखते हैं कि इंग्लैंड के बुद्धिजीवी “जॉन स्टुअर्ट मिल” ने 1869 में लिखी अपनी पुस्तक ‘द सब्जेक्शन ऑफ वूमेन’ में लिखा कि “आज के युग में विवाह ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां दास प्रथा अब भी मौजूद है। हमारे विवाह कानून के माध्यम से पुरुष एक मनुष्य के उपर पूरा अधिकार प्राप्त करते हैं। हासिल करते हैं मालिकाना हक और हुकूमत। हासिल करते हैं तलाक और बहुविवाह जैसी अश्लीलता की पूरी छूट।” इतने वर्षों पूर्व में ये कहा गया परन्तु भारत में स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है।

और लड़की की समस्याएं शादी करने तक नहीं बल्कि शादी के बाद और ज्यादा बढ़ जाती हैं I जैसे हम देखें की लड़का और लड़की दोनों शादी के बाद नौकरी करते हैं और यदि किन्हीं कारणों से लड़के का तबादला किसी दूसरी जगह हो जाए तो पूरा परिवार, रिश्तेदार और तथाकथित समाज ये आशा करता है कि उसकी पत्नी भी उसके साथ नई जगह पर जाएगी, ताकि उस लड़के को वहां पर कोई परेशानी ना झेलनी पड़े, परेशानी मुख्यत घर संभालने की, खाना बनाने की, सफाई करने की आदि। और इसके लिए यदि उस नौकरी भी छोड़नी पड़े तो छोड़ दे। इस प्रकार पति को समस्यायों से बचाने के लिए पत्नी को समस्याओं में डाल दिया जाता है,  बिना उसकी रजामंदी के।

वहीं यदि इसका उल्टा हो जाए कि पत्नी का तबादला कहीं नई जगह पर हो जाए तो लगभग 100 फीसदी मामलों में उसका पति उसके साथ नहीं जाता, नौकरी छोड़ना तो बहुत दूर की बात। इस पर लड़की को समझाया जाता है कि यदि तुम नौकरी के लिए चली जाओगी तो यहां तुम्हारे पति को तुम्हारे बिना समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इसलिए तुम नौकरी छोड़ दो और यहीं रहो। दोनों ही मामलों में नुकसान लड़की को ही उठाना पड़ रहा है।

इस से हम देख सकते हैं कि आज भी समाज स्त्रियों को पुरुषों की परेशानियां दूर करने का केवल यंत्र मात्र मानता है।

आजकल तलाक और शादी टूटने की संख्या बढ़ रही है, क्यूंकि आजकल पढ़ी लिखी नौकरी करने वाली महिलाओं ने मौजूदा रूढ़िवादी व्यवस्था कि चुनौती देना शुरू कर दिया है, महिलाओं में इच्छाएं जागृत होने लगी है कि वो भी किसी रविवार को सुबह आराम से उठे, पूरा दिन आराम करे, अखबार पढ़े और उनके पति घर के सारे काम करे, परन्तु महिलाओं की ऐसी इच्छाओं से पुरुषों को परेशानी हो रही है इसलिए उनके पास एक ही विकल्प बचता है कि जब काम खुद ही करना है तो फिर इसके साथ रहना ही क्यों है।

परन्तु पुरुष ये नहीं देखते कि जब पुरुष और महिला दोनों नौकरी करते हैं तब महिला को नौकरी के साथ साथ घर के कार्य भी करने पड़ते है इसलिए उस पर काम करने की दोहरी जिम्मेवारी और भार आ जाता है और जब कभी भी वह अपना भार कम करने कि सोचती है तब उसे तलाक जैसी धमकियां मिलती हैं, तलाकशुदा महिला को समाज में अपमानित नज़रों से देखा जाता है, जगहों जगहों पर तरह तरह की मनगढ़ंत बातें घड़ी जाती है और उसके चरित्र पर टिका टिप्पणी की जाती है। परन्तु इस सबके बावजूद अब महिलाओं ने अपने हकों के लिए बोलना शुरू कर दिया है बिना इसकी परवाह किए की समाज क्या कहेगा।

समाज और परिवारों की ऐसी संकीर्ण सोच के चलते देश का पूर्ण रूप से विकास नहीं हो पाता क्योंकि इससे आधी आबादी को वर्जित किया जा रहा है। यदि कोई समाज या देश पूर्ण रूप से विकसित होना चाहता है तो आवश्यक है कि महिलाओं को जीवन के हर स्तर पर सहयोग किया जाए और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्हें उनकी भागीदारी दी जाए।

Related posts

All In A Name

Elsa Joel

महामारी का महिलाओं पर आर्थिक प्रभाव

Rajesh Singh

A Tale of Jogini’s Exploitation

Guest Author