The Womb
Home » Blog » Opinion » इंदिरा गांधी का कठिनाइयों भरा सफर
Opinion

इंदिरा गांधी का कठिनाइयों भरा सफर

राजेश ओ.पी. सिंह

इंदिरा गांधी का जन्म भारत के प्रमुख स्वतंत्रता संग्रामी और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के घर 19 नवंबर,1917 को हुआ। इनका बचपन राजनीतिक माहौल में गुजरा, जिस वजह से इन्होंने बहुत छोटी उम्र में ही राजनीति में रुचि  लेना शुरू कर दिया और अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व की बदौलत 1959 में कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष चुनी गई और 1964 में अपने पिता की मृत्यु उपरांत पहली बार संसद (राज्य सभा) में प्रवेश किया और लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री काल में सूचना और प्रसारण मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री बनी।

 जब इनके पिता जी का देहांत हुआ तब कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता इंदिरा जी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे परन्तु इंदिरा जी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि लाल बहादुर शास्त्री जी भारत को इस संकट के दौर में ज्यादा बेहतर तरीके से विकास के पथ पर ले जा सकते हैं, और लाल बहादुर शास्त्री ने इंदिरा गांधी और करोड़ों भारतीयों को निराश नहीं किया , बात चाहे 1965 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध की हो या अन्य आर्थिक चुनौतियों की, हर क्षेत्र में भारत को मजबूती दी।

परन्तु 1966 में ताशकंद समझौते के बाद रहस्यमय परिस्थितियों में शास्त्री जी का देहांत हो गया, उसके बाद कांग्रेस के एक – दो वरिष्ठ नेताओं ने प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर दी, परंतु उनका पूरे भारत में जनाधार नहीं था, इसलिए पार्टी के अन्य मुख्य नेताओं ने इंदिरा गांधी को इस संकट के समय देश कि बागडोर अपने हाथ में लेने का अनुरोध किया।

प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी की राहें आसान नहीं थी, उन्हें अपने कार्यकाल के पहले वर्ष में बहुत आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, उनके विरोधियों द्वारा उन्हें ” गूंगी गुड़िया ” तक संबोधित किया गया, अभी सत्ता संभाले एक वर्ष ही हुआ था कि 1967 में भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव आ गए, लोकसभा में तो कांग्रेस पार्टी ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में बहुमत हासिल कर लिया परन्तु देश के 9 राज्यों में पहली बार गैर कांग्रेस राजनीतिक दलों ने सरकार निर्मित की, जो कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व को चुनौती देने के लिए पर्याप्त था। 

इसके 2 वर्ष बाद 1969 में कांग्रेस में टूट हुई और कांग्रेस के मोरारजी देसाई जैसे वरिष्ठ नेताओं ने अलग कांग्रेस बना ली,जिसका नाम कांग्रेस (ओ) रखा गया और इंदिरा गांधी की कांग्रेस का नाम कांग्रेस (आर) हो गया। 

इन सब चुनौतियों के बावजूद इंदिरा गांधी ने अपने आप को मजबूत रखा और सभी चुनौतियों का सामना करते हुए ना केवल निरन्तर चुनाव जीते बल्कि अनगिनत आर्थिक, सामाजिक और कृषि सम्बन्धी सुधार भी किए ।

जैसे 1971 में संपन्न हुए लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस ने “गरीबी हटाओ” का नारा दिया और चुनौती भरे समय से कैसे निपटा जाएगा की बात आम जन तक पहुंचाई और एक बार फिर से पूर्ण बहुमत से केंद्र में सरकार का निर्माण किया। 

इसी वर्ष दिसंबर में पूर्वी और पश्चिम पाकिस्तान में युद्ध छिड़ गया, जिससे भारत में शरणार्थियों कि संख्या बढ़ने लगी और भारत की अर्थव्यवस्था पर भार बढ़ने लगा, भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे विश्व और संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने इस समस्या को रखा पंरतु कोई ठोस समाधान ना होता देख कर युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से शामिल होना ज्यादा उचित समझा और पूर्वी पाकिस्तान को आजाद करवा कर एक लोकतांत्रिक बांग्लादेश नामक नए देश का निर्माण करवाया।

भारत ने युद्ध तो जीत लिया था पंरतु युद्ध की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर संकट आ गया, जिसे निपटने के लिए सरकार प्रयास कर ही रही थी कि अचानक से 1972 में देश के विभिन्न हिस्सों में सूखा पड़ गया जिस से फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट आई।

इस प्रकार एक साथ युद्ध से आए संकट ओर सूखा पड़ जाने से भारत में खाद्य संकट उत्पन्न हो गया परन्तु इंदिरा गांधी नेतृत्व सरकार ने अपने अथक प्रयासों के सहारे इस पर विजय प्राप्त की।

वर्ष 1974 में भारत के महान आंदोलनकारी “जयप्रकाश नारायण” के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति का नारा दिया, देश में जगह जगह पर हड़तालें और आंदोलन प्रदर्शन होने लगे , जिस से सरकार पर कानून व्यवस्था बनाए रखने का दवाब बढ़ना शुरू हुआ

चारों तरफ फैली अव्यवस्था से निपटने के केंद्र सरकार को मजबूरन जून 1975 को देश में राष्ट्रीय आपातकाल लगाना पड़ा । 

परन्तु इस दौर में भी इंदिरा गांधी सरकार भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और बेरोज़गारी व खाद्य संकट से निपटने के लिए निरंतर कार्यक्रम चलाती रही।

 वर्ष 1977 में इंदिरा गांधी ने ही राष्ट्रीय आपातकाल खत्म करके चुनावों की घोषणा कर दी और पूरा विपक्ष इंदिरा गांधी को हराने के लिए “जनता पार्टी” के झंडे तले एकत्रित हो गया और सभी ने एक साथ मिलकर इंदिरा गांधी के सामने चुनाव लड़ा और देश में प्रथम बार गैर कांग्रेस दल ने केंद्र की सत्ता हासिल की तथा  “मोरारजी देसाई” ने देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बनने की शपथ ग्रहण की। 

परन्तु जैसे की हमने बताया “जनता दल” अनेक “राजनीतिक दलों और विचारधाराओं” का मेल था इसलिए बहुत कम समय में ही इसमें फूट पड़ना शुरू हो गई और उधर से इंदिरा गांधी ने अपने कड़े संघर्ष से जनता में फिर से अपनी पकड़ बना ली और केवल तीन वर्षों बाद ही 1980 आम चुनावों में इंदिरा गांधी ने जबरदस्त वापसी की।

परंतु अब इंदिरा गांधी के सामने ज्यादा संघर्ष थे क्यूंकि जनता सरकार द्वारा पिछले तीन वर्षों में केवल आपसी संघर्ष के आलावा कुछ नहीं किया गया था जिसे ठीक करने का, अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने का और बेरोजगारी आदि मुख्य समस्याओं से निपटने का जिम्मा अब इंदिरा गांधी के सर पर था। इंदिरा गांधी ने इसे बखूबी निभाया और निरन्तर निभा रही थी परन्तु 31 अक्टूबर 1984 को उनके निवास पर उनके अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी।

परंतु इंदिरा गांधी कोई व्यक्ति नहीं थी जिसे मारा जा सकता था, ये तो एक विचार है, महिलाओं के लिए एक मिशाल है, एक सोच है और ये सोच आम जन के दिलों और दिमाग में हमेशा जिन्दा रहेंगी।

Related posts

Sulli Deals now “Bulli Deals” – New Year not so happy!

Guest Author

आधी आबादी की आजादी कहां छुपा दी?

Rajesh Singh

Censorship And Cinematograph Act of India – Will The Hammer Stop?

Guest Author