The Womb
Home » Blog » Editor's Pick » 21वीं सदी में दलित महिलाएं
Editor's Pick Opinion

21वीं सदी में दलित महिलाएं

राजेश ओ. पी. सिंह

बाबा साहेब डॉ. भीम राव अंबेडकर ने कहा था कि “मैं किसी समाज की प्रगति, उस समाज में महिलाओं की स्थिति से नापता हूं” , पंरतु आजादी के सात दशकों के बाद भी हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय है और यदि महिला ‘दलित’ है तो उसे दोहरे शोषण का शिकार होना पड़ता है,एक जो सभी महिलाओं पर होता है, दूसरा जो दलित जातियों पर होता है।

भारतीय समाज में हालांकि दलित महिलाओं ने अपना लोहा मनवाया है, बात चाहे राजनीति की करें या प्रशासनिक सेवाओं की या और भी ए श्रेणी के पदों की तो वहां पर दलित महिलाएं अपने संघर्ष के दम पर पहुंची है।

परन्तु क्या इतने बड़े मुकाम हासिल करने के बाद भी इन दलित महिलाओं को जातिगत टिप्पणियों व जलीलता से छुटकारा मिला है? इसका जवाब है नहीं।

क्यूंकि दिन – प्रतिदिन ऐसी घटनाएं हमारे सामने आती रहती है, जहां पर किसी महिला का केवल इसलिए अपमान किया जाता है क्योंकि वह दलित है।

भारत में दलितों की एकमात्र नेता बहन कुमारी मायावती, जिन्हें विश्व की टॉप 10 शक्तिशाली महिलाओं में शामिल किया जाता रहा है, जो एक राष्ट्रीय पार्टी की अध्यक्ष है और चार बार भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी है, को भारतीय संसद में एक मनुवादी सोच के पुरुष द्वारा असंवैधानिक और निम्न दर्जे के शब्द कह दिए जाते है,परन्तु उस पर कोई खास कार्यवाही नहीं होती और इसके साथ साथ उसके परिवार को चुनावों में भाजपा द्वारा टिकट भी दिया जाता है ।

वहीं वर्ष 2019 में आंध्र प्रदेश के ‘तांडिकोंदा’ विधानसभा क्षेत्र से दलित महिला विधायक “वुंदावली श्रीदेवी” को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में जातिगत शब्दो से अपमानित होना पड़ता है, परन्तु उन स्वर्ण समाज के पुरुषों पर भी कोई कार्यवाही आज तक नहीं की गई।

ऐसी अनेकों घटनाएं दिन प्रतिदिन घटित होती रहती है, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ऑफ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार कम से कम 10 दलित महिलाओं के साथ प्रतिदिन बलात्कार होता है, और पिछले दस वर्षों में यह 44 फीसदी तक बढ़ा है। बलात्कार के कुल 13273 मामलों में से दलित महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कारों की संख्या 3486 है, जो कि कुल मामलों का लगभग 27 फीसदी है, और ये केवल वे आंकड़े है जो प्रशासन द्वारा दर्ज किए गए है।

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार प्रशासन की जातिगत संकीर्णता, लापरवाही और भ्रष्टाचार की वजह से आधे से ज्यादा मामलों को तो दर्ज ही नहीं किया जाता।

“स्वाभिमान सोसायटी” नामक दलित महिलाओं व अंतरराष्ट्रीय महिला अधिकारों की संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि दलित महिलाओं के साथ होने वाली सेक्सुअल हिंसा व अपराध के मामलों में 80 फीसदी अपराध सामान्य और स्वर्ण जाति के पुरुषों द्वारा किए जाते है।

केरल जैसे अग्रणी राज्य में 1971 के बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में कोई दलित महिला सांसद नहीं बनी, इस से आसानी से आंदाजा लगाया जा सकता है कि दलित महिलाओं का प्रतिनिधित्व आज भी पुरुष प्रधान समाज में स्वीकार्य नहीं है।

भारत के सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थान दिल्ली विश्वविद्यालय के एक महिला कॉलेज में दलित सहायक प्रोफेसर को इसलिए क्लास लेने से मना कर दिया जाता है क्योंकि वह दलित है और दलित समाज के लिए समय समय पर अपनी आवाज़ उठाती है।

हालांकि सरकारों ने महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिए नाममात्र के कार्यक्रम चलाए है और राजनीति में प्रतिनिधित्व देने के लिए स्थानीय सरकारों में एक तिहाई आरक्षण की व्यवस्था करी है, इसके बावजूद महिलाएं आगे नहीं बढ़ पा रही है क्योंकि इन आरक्षित सीटों से महिला को पद तो मिल जाता है परन्तु शक्तियां उनके पति या घर के अन्य पुरुष ही प्रयोग करते है।

राजस्थान जहां भारत में सबसे पहले पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी, के जालोर जिले में नियुक्त ब्लॉक विकास अधिकारी जो कि एक दलित महिला है, ने पंचायतों में नवनिर्वाचित पदाधिकारियों की एक सभा बुलाई, इस सभा में महिला पदाधिकारियों के साथ आए पुरुषों को दलित महिला अधिकारी ने सभा से बाहर जाने का बोल दिया, बस इतने में ही वहां मौजूद क्षेत्र के पुरुष विधायक भड़क गए और गुस्से में उन्होंने न केवल दलित महिला अधिकारी को डांटा बल्कि साथ में असंवैधानिक शब्दों का प्रयोग करते हुए एक पुरुष अधिकारी को कहा कि “इस महिला को समझा लो वरना मैं इसे रगड़ के रख दूंगा” और विधायक यहीं नहीं रुके और अपने समर्थकों के साथ दफ्तर के बाहर धरने पर बैठ गए। यदि महिला अधिकारी दलित ना होती तो शायद उस पर ऐसी निंदनीय टिप्पणी नहीं होती।

इस घटना पर न तो राजस्थान सरकार ने, न ही राजस्थान के लोक सेवा आयोग ने और ब्लॉक विकास अधिकारी के मुख्य कार्यालय ने भी कोई कार्यवाही नहीं की ।

वहीं बात यदि महिला आयोग की करें तो यहां पर जातीय भेद स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहा है, चूंकि महिला आयोग बात तो महिलाओं की करता है परन्तु शर्त ये है कि महिला स्वर्ण जाति से होनी चाहिए।

अर्थात महिला आयोग ने भी इस दलित महिला अधिकारी के साथ हुए अपमानित व्यवहार पर कोई कार्यवाही की मांग नहीं की है।

यदि उपरोक्त संस्थानों और आयोगों द्वारा उचित और दृढ़ कार्यवाही की जाती तो प्रदेश में एक संदेश जाता जिस से मनुवादी स्वर्ण पुरुषों के अमर्यादित व्यवहार पर कुछ हद तक नियंत्रण लगता परन्तु ऐसा नहीं हुआ।

ऐसी घटनाओं से महिलाएं और खासकर दलित छात्राएं जब देखती है कि इतने बड़े ओहदे पर पहुंचने के बाद भी पुरुष और स्वर्ण मनुवादी समाज उन्हें कितनी गिरी हुई नज़रों से देखता है और उनका हर स्तर पर अपमान करने से बाज नहीं आता इससे न केवल उनका मनोबल गिरता है बल्कि उनमें नाकारात्मकता भी पैदा होती है।

इस प्रकार जब सब कुछ दलित महिलाओं के खिलाफ है, कोई भी संस्थान उनके समर्थन में नहीं है तो दलित समाज को इस पर गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है कि कैसे ऐसी निंदनीय घटनाओं को रोका जाए और यदि ऐसी घटनाएं होती है तो कैसे सरकार पर उचित कार्यवाही का दवाब बनाया जाए। ताकि दलित छात्राओं में मनोबल बढ़ाया जा सके और उन्हें जागरूक व मजबूत करने के लिए प्रेरित किया जा सके।

अब प्रश्न ये है कि जब हमने हाल ही में अपना 71 वां गणतंत्र दिवस मनाया है, मौजूदा केंद्र सरकार दलितों की हितैषी होने के दावे करती रही है, अम्बेडकर के सपनों का भारत बनाने की बात करती रही है, इसके बावजूद पुरुष प्रधान समाज में दलित महिलाओं की ये स्थिति है, इसके आलावा राजस्थान जैसे प्रदेश में जहां कांग्रेस सरकार महिला सुरक्षा व महिला सम्मान की बातें करती है वहां महिलाओं की स्थिति और भी ज्यादा बुरी है अर्थात इतने दशकों में भी समाज में पुरुषों की प्रधानता जारी है और महिलाओं को आज भी दूसरे दर्जे पर रखा जा रहा है और दलित महिलाओं को स्थिति का अंदाजा तो उपरोक्त अनेकों घटनाओं से लगाया है जा सकता है कि किस स्तर पर उन्हें शोषित और जलील किया जा रहा है।

इस समाजिक समस्या के समाधान के लिए हमें सभी को मिल कर प्रयास करने चाहिए।

Image Credit: https://www.idsn.org

Related posts

Using The Term “Item” To Address Any Girl Is Obviously Insulting In Nature: Special Pocso Court, Mumbai

Guest Author

Where Are The Women?

Avani Bansal

13th – A Lesson on Race, Injustice and Mass Incarceration

Guest Author