(राजेश ओ.पी. सिंह)
आलोक धन्वा की पंक्तियां ” घर की ज़ंजीरें कितनी ज्यादा दिखाई पड़ती है, जब घर से कोई लड़की भागती है ” समाज में फ़ैल रही कुरीति पर प्रकाश डाल रही है।
भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही सामाजिक कुरीतियों जैसे विधवा विवाह, बाल विवाह, सती प्रथा आदि में सुधार को लेकर लगातार प्रयास हो रहे हैं। आधुनिक समय में ये कुरीतियां नए रूप में सामने आ रही है, भारतीय समाज को पिछले हजारों वर्षों से जातियों के जंजाल ने जकड़ रखा है, कोई परिवार अपनी जाति के बाहर अपनी बेटी का ब्याह नहीं करना चाहता , परिणामस्वरूप लड़कियां घर से भाग कर ब्याह कर रही है, उसके बाद झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा की वजह से ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं दिन प्रतिदिन सामने आती रहती है। प्राचीन काल में जातियों से केवल निम्न जातियों के लोगों को नुक्सान हो रहा था, परंतु आधुनिक समय में इस कुप्रथा से हर जाति की लड़कियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है।
हमें ज़रूरत है जातियों के इन कठोर बंधनों को तोड़ने की ताकि लड़कियों को मजबूर ना होना पड़े घर की दीवारें और नियम तोड़ने को।
हरियाणा में जाति प्रथा ने बहुत लड़कियों की ज़िंदगी निगल ली है, बात हम हरियाणा के सिरसा जिले के एक गांव की करेंगे , जहां हाल ही के 2-3 वर्षो में दर्जन भर लड़कियां शादी के लिए घर से भाग निकली है, सबसे खास बात ये कि ये सभी लड़कियां दलित समुदाय से संबंध रखती है, सभी की उम्र 18-21 वर्ष के बीच की है, सभी लड़कियों ने लगभग कक्षा बाहरवी तक पढ़ाई भी करी है, सभी लड़कियों में एक समान पैटर्न देखने को मिला है, जबकि सभी लड़के अलग अलग जगहों से है, जो आपस में एक दूसरे को जानते भी नहीं ,परंतु फिर भी एक प्रथा सी चल निकली है ।
इन लड़कियों का क्या भविष्य रहेगा ये हम अच्छी तरह से सोच सकते है, सुनने में आया है की एक लड़की जो 2018 के जून माह में घर से भागी थी उसको उस लड़के ने आगे कहीं बेच दिया है, अन्य एक लड़की के बारे में पता चला है कि उसको उसके पति ने छोड़ दिया है अब वो किसी अन्य पुरुष के संग अपना जीवन व्यतीत कर रही है, एक लड़की को ढूंढ कर घर लाया गया ,जहां उसकी शादी कहीं दूसरी जगह पर कर दी गई, परन्तु वो लड़की आज अपने ससुराल में नहीं रह रही, उसकी अपने पति के साथ कई दफा लड़ाई हो चुकी है जिस वजह से वो अब अपने मां बाप के घर रह रही है, उस लड़की को समाज के लोग अच्छी निगाहों से नहीं देखते, सभी को लगता है कि इसकी खुद की गलती है। ऐसी अनेकों बाते सामने आ रही है।
परन्तु पूरे गांव में कोई भी व्यक्ति इस कुप्रथा पर बोलने को तैयार नहीं, सभी का कहना है कि जिसको भागना है वो भागेगी, उसे कोई रोक नहीं सकता।
परन्तु सोचने का विषय ये है कि ये लड़कियां घर से भाग क्यों रही हैं?
क्यों एक बेटी अपने पिता के प्यार को, दादी के दुलार को, भाई के रिश्ते को, मां की ममता को सब कुछ दांव पर लगा देती है और चुन लेती है प्रेमी के प्रेम को?
हमनें देखा कि इस गांव से जितनी लड़कियां भागी है उन सभी के घर बहुत छोटे छोटे है, बहुत ही ज्यादा गरीबी से जूझ रहे हैं , इन लड़कियों के परिवार सुबह से शाम तक मजदूरी करते है ,लगभग सभी लड़कियों के पिता शराब का सेवन करते है जिस वजह से हर एक दो दिन बाद घर में परिवारिक क्लेश होता रहता है और सारा दिन काम के लिए घर से बाहर होने की वजह से , और शाम को शराब पीने की वजह से अपने बच्चों की तरफ खास ध्यान नहीं दे पाते, थकान और नशे की वजह से उन्हें रात को चारपाई पर लेटते ही नींद आ जाती है और अगली सुबह फिर वही प्रक्रिया, काम को जाना, शाम को आना, ऐसे माहौल में लड़कियां इस गरीबी, इस माहौल से आजाद होने के लिए ऐसे कदम उठा रही है।
दूसरा दलित समुदाय में भी जातियों का पदसोपनिक ढांचा है, हर जाति एक दूसरे के उपर है , एक दलित भी अपनी जाति के अलावा अन्य दूसरी दलित जाति के साथ रिश्ता नहीं जोड़ना चाहता ,इस वजह से भी ये कुप्रथा फैल रही है।
लड़कियों के इस कदम से उनको खुद को ,उनके परिवार के साथ साथ उनकी छोटी बहनों को नुक्सान हो रहा है, सबसे प्रथम तो उनकी बहनों को भी लोग आसान टारगेट मानते है और सोचते है कि ये लड़की भी अपनी बहन की तरह होएगी।
दूसरा इन छोटी बहनों को स्कूल से हटा लिया जाता है, परिवार में एक भय पैदा हो जाता है कि कहीं ये भी वैसा कदम ना उठा ले, उनकी छोटी उम्र में शादी कर दी जाती है, लगभग लड़कियां नाबालिग होती है, इन नाबालिग लड़कियों की शादी पर ना तो समाज कुछ बोलता है ना ही गांव के लोग, सभी को लगता है कि इनकी शादी करना ही सबसे उचित कार्य है यदि शादी नहीं करी तो ये लड़कियां खुद शादी कर लेगी, इन 15-16 वर्ष की नाबालिग लड़कियों को शादी के बाद अनेकों स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता,शादी की उम्र होने तक ये 2-3 बच्चों कि मां बन जाती है,और बच्चों को पालने के लिए फिर से इनके जीवन की वहीं प्रक्रिया शुरू हो जाती है जो इनके मां बाप की होती है ये एक निरंतर चलने वाली क्रिया है और इसने ऐसी अनेकों लड़कियों के जीवन को निगल लिया है। इसी गांव में वर्ष 2019 में एक लड़की अपनी शादी के दो दिन पहले जब शादी की सरी तैयारियां हो चुकी थी घर से भाग निकली, तो घर वालों ने उसकी छोटी बहन जो कक्षा नौवीं में पढ़ाई कर रही थी, महज 15 वर्ष की थी, की शादी उस लड़के से कर दी, कुछ दिन पश्चात वो लड़की जो घर से भागी थी को उस लड़के ने छोड़ दिया वो वापिस अपने घर आ गई, अब दोनों बहनों की ज़िन्दगी बर्बाद हो गई।
समाज के बुद्धिजीवियों को इस बारे में जागरूकता अभियान चलाने की ज़रूरत है, जो लड़कियों के मां बाप को जातियों के बारे में सचेत करे, और उन्हें अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए प्रेरित करें। घर में सकारात्मक माहौल कैसे बना रहे के बारे में भी जागरुक किया जाए।
और इसके साथ साथ स्कूलों में पढ़ रही लड़कियों को इस कुप्रथा के बारे में जागरूक करे और उन्हें पढ़ाई की तरफ आकर्षित करें ताकि वो बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सके और अपना व अपने परिवार का जीवनस्तर सुधार सके।
हमें लड़कियों को बताना होगा कि वे वो भाग्यशाली 5-7 प्रतिशत लड़कियां हो , जो कक्षा 11 या 12 तक पहुंच पाती है, हमें उन्हें उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित करने कि ज़रूरत है और उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त माहौल और संसाधनों को उपलब्ध करवाने की ज़रूरत है।
ताकि इन लड़कियों को और इनकी आगे आने वाली पीढ़ियों को सुधारा जा सके और इस कुप्रथा को खत्म किया जा सके और समाज में एक सकारात्मक माहौल पैदा किया जा सके।
हौव्वा नहीं होती घर से भागी हुई लड़कियां,
चाहती नहीं भागना लड़की,
डरती है रस्मों रिवाजों से,
सोई नहीं बरसों से, जागती सोचती हैं
एक लम्बी नींद को हर वक्त।